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गांधी फ़ैज़-ए-आम काॅलेज में हिंदी विभाग और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सी.पी.ई. योजना के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय सेमिनार ‘20वीं शताब्दी का भारतीय साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलऩ’ विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
Posted by GF Collegeदिनांक: 17 फरवरी 2020
गांधी फ़ैज़-ए-आम काॅलेज में हिंदी विभाग और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सी.पी.ई. योजना के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय सेमिनार ‘20वीं शताब्दी का भारतीय साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलऩ’ विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महाविद्यालय की प्रबंध समिति के अध्यक्ष जनाब सैयद मोइनुद्दीन साहब रहे। मुख्य अतिथि जनाब सैयद मोइनुद्दीन साहब द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी की स्मारिका तथा पुस्तक ‘20वीं शताब्दी का भारतीय साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलऩ’ विमोचन भी किया गया। इस अवसर पर प्राचार्य प्रोफेसर जमील अहमद ने उन्हें पुष्प गुच्छ, स्मृति चिन्ह प्रदान कर तथा शाल ओढ़ाकर उनका स्वागत किया।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अलीगढ़ से पधारे मुख्य वक्ता प्रोफेसर आशिक अली ने कहा कि राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान भारतीय साहित्य ने हमें जो विरासत सौंपी थी आज हम उसे संभाल पाने में असमर्थ हो रहे हैं। हमारे साहित्यकारों और क्रांतिकारियों ने जिस राष्ट्रीय एकता पर ज़ोर दिया था आज हमें उसे फिर से जोड़ने की ज़रूरत है। हम हिंदुस्तानी न रहकर दायरों में बंट गए हैं। आज विघटनकारी शक्तियों द्वारा फैलाए जा रहे भ्रम को दूर करने की आवश्यकता है, जिसमें साहित्य ही केंद्रीय भुमिका निभा सकता है।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के ही दूसरे वक्ता प्रोफेसर अजय बिसारिया ने प्रेमचंद के हवाले से कहा कि साहित्य राजनीति के आगे मशाल लेकर चलने वाली सच्चाई होती है। उन्होंने कहा कि आज हम राष्ट्र प्रेम की बात तो करते हैं, पर राष्ट्र क्या है इसे नहीं समझ पा रहे। साहित्य यदि हमें अपने अधिकारों के प्रति सचेत करता है तो हमें अपने उत्तरदायित्वों के प्रति भी आगाह करता है।
इससे पूर्व कार्यक्रम का आरंभ अरबी विभाग के वक़ील अहमद के द्वारा तिलावते क़ुरान से हुआ। प्राचार्य प्रोफेसर जमील अहमद ने अतिथियों को पुष्प गुच्छ, स्मृति चिन्ह प्रदान कर तथा शाल ओढ़ाकर उनका स्वागत किया। धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव डाॅ0 फैयाज़ अहमद ने किया। संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन डाॅ0 मोहम्मद अरशद ख़ान ने किया तथा संचालन डाॅ0 मोहम्मद साजिद ख़ान ने किया।
दूसरे सत्र के मुख्य वक्ता काशी हिंदू विश्वविद्यालय के डाॅ0 समीर कुमार पाठक ने कहा कि राष्ट्रवाद एक नई अवधारणा है। रवींद्रनाथ टैगोर राष्ट्रवाद के विराट प्रतीक हैं। नेहरू जी के राजनीतिक गुरु भले ही गांधी जी रहे हों पर सांस्कृतिक गुरु टैगोर ही थे। 20 वीं शताब्दी में अनेक सहमतियों के साथ कुछ अंतर्विरोध भी थे, जिन्हें अनदेखा किया गया। वही अंतर्विरोध आज आज झूठे भ्रमों के रूप में समाज के लिए समस्या बन गए हैं।
विशिष्ट वक्ता भारत अध्ययन केंद्र काशी हिंदू विश्वविद्यालय के डाॅ0 अमित कुमार पांडेय ने कहा कि भारत में राष्ट्रीयता का उदय 19वीं शताब्दी में हुआ, जो 20वीं शताब्दी में अत्यंत मुखर हो गया। भारतीय साहित्य में आध्यात्मिक चेतना के साथ-साथ राजनीतिक चेतना उसकी विशिष्टता है। साम्राज्यवाद के जबर्दस्त दबाव और अभिव्यक्ति के संकट के बावजूद 20वी सदी के साहित्य ने जो राष्ट्रीय चेतना का प्रसार किया उससे आज के दौर में हमें सीख लेने की आवश्यकता है।
इस सत्र में डाॅ0 दरख़्शां बी, डाॅ0 तजम्मुल हुसैन सहित सूबी गुप्ता, रंजीत कुमार और अभिषेक आदि ने अपने शोधपत्रों का वाचन किया। कार्यक्रम के सफल आयोजन में डाॅ0 काशिफ नईम, डाॅ0 परवेज़ मुहम्मद का विशेष योगदान रहा।
इस सत्र का संचालन डाॅ0 शमशाद अली ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डाॅ0 दरख़्शां बी ने किया।
कार्यक्रम के दौरान महाविद्यालय की प्रबंध समिति के प्रबंधक मलिक अब्दुल वाहिद खाँ, उपाध्यक्ष वकार अहमद, प्रवासी भारतीय हसीब खां सहित महाविद्यालय का समस्त स्टाफ, शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।
प्राचार्य
प्रोफेसर जमील अहमद
गांधी फ़ैज़-ए-आम काॅलेज, शाहजहाँपुर