दिनांक: 01 फरवरी 2016
‘‘नैतिकता मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। नैतिकता ही इंसान के किरदार को अनुशासित करती है। हम जो व्यवहार ख़ुद के प्रति चाहते हैं, वहीं दूसरों से करना चाहिए। यही नैतिकता का और अंततः धर्म का मूल बिंदु है।’’ यह विचार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सुन्नी थियोलाॅजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो0 सऊद आलम क़ासमी ने व्यक्त किए। वे गांधी फ़ैज़-ए-आम काॅलेज में आयोजित एक राष्ट्रीय सेमिनार ‘प्रमोशन आॅफ इथिक्स एंड ह्यूमन वैल्यूज़’ में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि तालीमी इदारों का मकसद इंसानियत की तलाश और उसे जाग्रत करना है, किंतु अफ़सोस है कि आजकल उच्च शिक्षित समाज ही भ्रष्टाचार में लिप्त है। उन्होंने इतिहास के तमाम हवालों से बताया कि इस्लाम नैतिकता पर सर्वाधिक बल देता है। इस्लाम में मानवीय मूल्यों को बड़ी अहमियत दी गई है।
कर्यक्रम के विशिष्ट अतिथि, बरेली काॅलेज बरेली से पधारे डाॅ0 ए0 सी0 त्रिपाठी ने कहा कि आज हमारे जीवन में विकास है, सुख है पर आनंद नहीं है। उन्होंने कहा कि मनुष्य एक ओर तो नश्वर प्राणी है, किंतु उसी नश्वरता में अनश्वरता का भी निवास है। दैवीय चेतना मनुष्य में एक इकाई के रूप में अभिव्यक्त है। गुणात्मक रूप से दोनों एक हैं किंतु परिमाणात्मक रूप में अंतर है। उन्होंने आगे कहा कि पश्चिम में नैतिक मूल्यों की चर्चा यदि सुकरात से शुरू होती है तो भारत में गीता नैतिकता का महान शास्त्र है। गीता का कर्मफल सिद्धांत ही वास्तव में नैतिकता की नींव है।
दूसरे सत्र की अध्यक्षा देहरादून से पधारी प्रोफेसर रेनू शुक्ला ने कहा कि जीवन में अनुशासन और आनंद का नाम ही नैतिकता है। चाहे धर्म हो या समाज नैतिकता का मज़बूत आधार हर कहीं मौजूद है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और राजनीति विज्ञान विभाग के संयुक्त सहयोग से आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्राचार्य डाॅ0 अक़ील अहमद ने कार्यक्रम अध्यक्ष सैयद मोइनुद्दीन मियाँ तथा आए हुए अतिथियों का स्वागत पुष्प गुच्छ भेंटकर और प्रतीक चिह्न व शाल प्रदानकर किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का ह्रास हुआ है। आज मनुष्य भौतिक रूप से पर्याप्त उन्नति कर रहा है किंतु उसका नैतिक जीवन पतन की ओर उन्मुख है।
कार्यक्रम का आंरभ डाॅ0 इशरत अल्ताफ़ द्वारा की गई तिलावते क़ुरान से हुआ। विषय प्रर्वतन डाॅ0 ख़लील अहमद ने किया। तैयबा, सहीफा, आरज़ू, अरशी और सदफ़ ने ‘लब पे आती है’ दुआ पढ़ी। संचालन डाॅ0 अब्दुल मोमिन तथा डाॅ0 मोहम्मद साजिद ख़ान ने किया। सेमिनार-संयोजक डाॅ0 मोहम्मद तैयब ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
इस अवसर पर महाविद्यालय की शोध-अर्द्ध वार्षिकी ‘रिसर्च जर्नल आॅफ सोशल साइंसेज एंड ह्युमैनिटीज़’ का विमोचन भी किया गया।
कार्यक्रम के दौरान महाविद्यालय की प्रबंध समिति के उपाध्यक्ष मलिक अब्दुल वाहिद खाँ, हाजी मोहम्मद असलम ख़ाँ एडवोकेट, अब्दुल रशीद ख़ाँ, सैयद मसूद हसन, ख़ालिद अलवी, शाकिर अली खाँ, डाॅ0 अनवर मसूद, डाॅ अब्दुल वहाब, डाॅ0 जमील अहमद, डाॅ0 सैयद मुर्शिद हुसैन, डाॅ0 रेहानुर्रहमान, डाॅ0 अहसन रशीद सिद्दीक़ी, डाॅ0 अक़बाल अहमद, डाॅ0 इफ़ज़ालुर्रहमान, डाॅ0 नईमुद्दीन सिद्दीकी, डाॅ0 अब्दुल सलाम, सैयद मुजीबुद्दीन, डाॅ0 फ़ैयाज़ अहमद, सैयद अनीस अहमद, डाॅ0 मोहम्मद तारिक,़ डाॅ0 अबुल हसनात, डाॅ0 मोहम्मद साजिद ख़ान, डाॅ0 मोहम्मद अरशद ख़ान, डाॅ0 जी0ए0 क़ादरी, डाॅ0 तनवीर अहमद, डाॅ0 सीमा शर्मा, डाॅ0 मोहम्मद ज़माँ खाँ, डाॅ0 अज़हर सज्जाद, डाॅ0 दरख्शां बी, डाॅ0 सईद अख़्तर, डाॅ0 अरशद अली, डाॅ0 कामरान हुसैन ख़ान, मोहम्मद रिज़वान, डाॅ0 नीलम टंडन, डाॅ0 उषा गर्ग, डाॅ0 अर्चना सक्सेना आदि मौजूद रहे।
भवदीय
प्राचार्य
डाॅ0 अक़ील अहमद
गांधी फ़ैज़-ए-आम काॅलेज, शाहजहाँपुर